रविवार, 16 मई 2010

क्या भारत की इस दसा से आप सनतुषट है !

अरे भाई यदि मशक्कत ही करना होता तो यहाॅं होते न जाने हम कहाॅं होते बस इसी बला से तो हम बचते ही है और आपने भी इसी बला का नाम ले दिया कहीं बकवास करनी हो वह तो कर देगे लेकिन मशक्कत की उम्मीद वह भी हम से।मशक्कत के नाम से बीमार पड़ गये हम। शायद इसी लिये बड़े बड़े सफेदपोश जब आरामग्रह में पहुॅंच जाते है तो उन्हें डाक्टर ही याद आते है आये भी क्यों न।क्योंकि आजीवन ऐसे लोगों ने आरामग्रह से बाहर रहकर अपनी कर्म साधना में सिर्फ लोगो का तिरस्कार किया है और ऐसे अकर्म किये है जो कि ईश्वर किसी भी देशभक्त से न करवाये इस की प्रमाणिकता आये दिन आपको गाहे बगाहे हो ही जाती है।बस हमारी और आपकी भी कुछ कमिंया है जो कि ऐसे देशभक्तो को संरक्षण प्रदान करते है जैसे ही वह अपनी देशभक्ति का परिचय दे तभी उन्हें यह आभास करा दे कि इस तरह की भक्त हमने बचपन में करके छोड़ दी है और यदि उनके क्रियाकलापो में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो हम उनकी गिनती स्वतन्त्रता सेनानियों में करवाना भी जानतें है अब यह आपकी किस्मत रही कि आपको सम्मान आंतकवादी के रुप में मिले या स्वतन्त्रता सेनानी के रुप में क्योंकि हम किसी की किस्मत को तो बदल नहीं सकते और बदलाव एक सतत प्रक्रिया है जो कि निश्चित रुप से सब कुछ बदल देती है देखिये न जो हमको छाया प्रदान करते है उन्हीं के हम दुश्मन बन बैठे किसी भी रुप में इससे साक्षात हो सकते है आज हमारे देश में ऐसे कपूतो की कमीं नहीं है जिन्होने माता पिता की छत्रछाया में रहकर तरक्की की और वह एक अच्छे मुकाम तक पहुॅंचे और जब माता पिता को उनके प्यार दुलार की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होने उनको वृद्धाश्रम का आश्रय ही प्रदान किया क्या ऐसे पेड़ के फल मीठे हो सकते है और क्या ऐसे पेड़ो से छाया की उम्मीद की जा सकती और जो यह बयार चल रही है और पेड़ो का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है इसके रोकथाम की उम्मीद है अथवा नहीं। क्या यह उम्मीद रखी जाये कि हमारे चारो तरफ फिर से पेड़ हो पायेगें या छाया के अभाव में ही रहेगें सोचियें आप तप रहे हो और आपको छाया मिल जाये ंतो आप कैसा महसूस करेगें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें