बुधवार, 14 अप्रैल 2010

क्या भारत की इस दशा से आप संतुष्ट है

कंाफी समय से मेरे मन में यह विचार अकुंरित हो रहा कि क्या ऐसे ही सारी व्यवस्थायें चलती रहेंगीं ंऔर हम मूक दर्शक बने इन अव्यवस्थाओं से रुबरु होते रहेगें आखिर कब तक यदि हम जनता है तो भी, और यदि कर्मचारी है तो भी,और यदि नेता है तो भी,अब आप सोचेगें की बचा कौन इन अव्यवस्थाओं से रुबरु होनें से तो यही तो जानना चाहता हूॅु आपसे।और इस मुहिम के द्वारा जनजाग्रत हो की व्यवस्था और अव्यवस्था है हमारी ही देन जिस दिन हम सजग हो जायेगें उस दिन सारी व्यवस्थायें चाक चैबंद हो जायेगी तो क्यों नही करते है हम पहल आखिर इसके पीछे कारण क्या है जो अत्याचार हम पर हाबी हो रहे है क्या हम डरपोक है,या किसी सहारे की आवश्यकता है या आत्म विश्वास की कमीं या कुछ और।वैसे तो और में ही बहुत कुछ समाया हुआ है जिस दिन यह ज्ञान चक्षु हमारे खुल जायेगें उस दिन हम किसी रुप में अवतरित हो इन्सानी पहल कर अत्याचार से मुक्त हो पायेगें अन्यथा जी तो रहें ही है क्योंकि हमारें बुजुर्गो ने ही आर्शीवाद दिया है जीते रहो।और हम जी रहे है क्या आने वाली पीढी़ को भी यही आर्शीवाद हम दे कि जीते रहो या यह कि सम्मान के साथ जियो।जीना तो हर हाल में है कोई सड़क पर ताउम्र जीता है तो कोई महलो में तो कोई किसी के सहारे तो शायद हम भी उसी नस्ल के जन है जो हम जी रहे है,हमारी आपकी तो कट गयी उस आने वाली पीढ़ी का तो ध्यान रखो जिसे विरासत में यह सामाजिक अव्यवस्थायें दे रहे हो,क्या बुजदिल हो या पिछलग्गू।