सोमवार, 3 मई 2010

क्या भारत की इस दसा से आप संतुष्ट है

यदि पिछलग्गू बने रहोगे तो सारी उम्र यूॅं ही गुजार दोगे क्योकि किसी का आश्रय लेना ही मनुष्य की सबसे बड़ी नाकामयाबी है अब आप यह जरुर सोचेगे कि यदि किसी का सहारा नहीं है तब तो मनुष्य नितान्त अकेला है,आपने केले तो बहुत खाये होगें परन्तु आपने कभी यह अनुभव नहीं किया होगा कि वह केला जो गुच्छो में उत्पादित होता है परन्तु जब इस दुनिया के बाजार में आता है तो वह अकेला ही होता है न कि कोई संगी साथी यह तो उसके भाग्य के उपर है कि उसे कोई संगी साथी मिल जाये वैसे भी इस संसार में जब जन्म लिया तो क्या कोई साथ में आया था आये तो निपट अकेले ही थे तो सहारे या पिछलग्गू बनने की क्या आवश्यकता है यदि है तो बोलते या लिखते क्यों नही जिससे कि मेरा सीमित ज्ञान भी असीमित हो और जन भी जागरुक हो आपके विचारो से एक नही अनेक लोग लाभान्वित होगे क्योकि जो समाज में नेक लोग है वह तो चन्द ही बचे ही ऐसा न हो कि बाघो को बचाने की तरह किसी व्यवसायिक समुदाय को नेक इन्सान को बचाने की भी पहल करनी पड़े,कहीं ऐसा न हो जो नेक नहीं है यानि अनेक है वह हम पर हावी हो जाये वैसे जो वर्तमान भारत की स्थिति है उसमें भी कुछ ऐसा ही हो रहा है और हम नाकारा बने हुए है जरा तो सोचियें कि क्या सकारात्मक स्थिति अच्छी होती है या नकारात्मक नकारात्मक स्थिति में तो मनुष्य अवसाद की स्थिति में आ जाता है और यदि इस स्थिति से उसे निजात नहीं मिलती है तो वह गम्भीर मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाता है शायद इसी लिये हमारा प्यारा सा भारत और उसके जन शारीरिक बीमारियों की अपेक्षा मानसिक बीमारियों की चपेट में आ रहे है,तो इसके बाबजूद भी आप नाकारा ही बने रहेगे या हमको भी कुछ सीख देगें जिससे कि हम भी कुछ ज्ञानार्जन कर सके

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